जब छोटे बच्चे को सुनने में समस्या हो तो यह बहुत चिंता का विषय होता है और इसके लिए तुरंत ध्यान देना आवश्यक है। अगर आपका बच्चा 3 साल का होने को है और यह समस्या 1 साल की उम्र से बनी हुई है, तो सबसे पहले, किसी विशेषज्ञ ENT (कान, नाक, गला) डॉक्टर से पूरी तरह से जाँच कराना अति आवश्यक है। कभी-कभी कान में संक्रमण या कुछ संरचनात्मक समस्याएँ सुनने में रुकावट पैदा कर सकती हैं, जिनका आधुनिक चिकित्सकीय उपचार संभावित होता है।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोन से, कुछ उपाय हैं जो इसके साथ सोच कर देखने योग्य हैं। हालांकि, यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि इन उपायों को किसी मेडिकल ट्रीटमेंट के प्रतिकूल न हो।
1. बल्य चिकित्सा: आयुर्वेद में बल्य चिकित्सा का उपयोग बच्चों की स्वस्थ्य वृद्धि एवं विकास के लिए किया जाता है। पद्मासन, भ्रामरी प्राणायाम जैसे आसनों एवं प्राणायामों का हल्का अभ्यास, जो बच्चे के हिसाब से सुरक्षित हो, लाभकारी हो सकता है।
2. तेल चिकित्सा: कान के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए तेल जैसे कि ‘नारायण तेल’ को कान के बाहरी हिस्से पर हल्के से मालिश करने की सलाह दी जाती है। ध्यान रहे के यह कान के अंदर नही पड़ना चाहिए बिना विशेषज्ञ की सलाह के।
3. औषधि एवं आहार: बच्चें के आहार में त्रिफला जैसी औषधि, विटामिन युक्त भोजन, जिसमे हरी सब्जियाँ, फल शामिल हों, शामिल करे।
4. ध्वनि चिकित्सा: नियमित रूप से बच्चे से बात करें, संगीत सुनाएं जिससे कि उसके मानसिक विकास को बढ़ावा मिले।
पुन: ध्यान दें, कि जब कोई चिकित्सा की बात आती है तो परामर्श बिना किसी देरी के एक योग्य चिकित्सक से करना चाहिए। समस्या गंभीर हो सकती है यदि सही समय पर उसका निदान और उपचार ना हो। यह भी संभव है कि आपके बच्चे को कोक्लियर इम्प्लांट जैसी तकनीक की आवश्यकता हो, किन्तु इसके लिए संभावित शल्य चिकित्सा की डॉक्टर से सिफारिश की जानी चाहिए।
सुनने में परेशानी की स्थिति गंभीर हो सकती है, खासकर जब छोटे बच्चों की बात आती है, जहां जल्दी हस्तक्षेप महत्वपूर्ण हो सकता है। सदियों पुरानी सिद्ध-आयुर्वेदिक परम्परा में, ऐसे मामलों में आमतौर पर वादात्त (वात दोष) का असंतुलन देखा जाता है, जो आमतौर पर सुनने की समस्याओं के लिए जिम्मेदार होता है।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से, आपको अपने बच्चे के आहार और दिनचर्या में कुछ बदलाव करके मदद मिल सकती है। सबसे पहले, अपने बच्चे के आहार में वात को शांत करने वाले खाद्य पदार्थ जोड़ें। इनमें घी, तिल का तेल, और अच्छी गुणवत्ता वाले सूप शामिल हो सकते हैं। यह मदद करता है वात को संतुलित करने और कानों की स्वास्थ्य के लिए पोषण प्रदान करने में।
सुनने की समस्या के लिए नियमित तिल के तेल से कान में अभ्यंग (तेल की मालिश) सहायक हो सकती है। हल्का गर्म तिल या बादाम तेल इस्तेमाल करें और डॉक्टर के परामर्श से कर्णपुटिका के पास हल्की मालिश करें।
इसके अलावा, वादात्त को संतुलित रखने के लिए बच्चें को नियमित रूप से श्रवन शक्ति बढ़ाने वाले आसनों में सम्मिलित करें जैसे कि भुजंगासन और अधोमुख श्वानासन। हालांकि, यह सुनिश्चित करें कि बच्चे आसनों में सहज हैं और जरूरत पड़ने पर मार्गदर्शन प्राप्त हो।
यदि इन उपायों से सुधार नहीं होता है या बच्चा किसी भी चिकित्सा सलाह के अनुसार प्रगति नहीं कर रहा है, तो तुरंत सुनने के चिकित्सक से संपर्क करें, क्योंकि चिकित्सा हस्तक्षेप आवश्यक हो सकता है। सुनने की समस्याओं को नजरअंदाज करना बच्चे के समग्र विकास को प्रभावित कर सकता है, इसलिए सबसे महत्वपूर्ण है कि चिकित्सा सलाह को प्राथमिकता दी जाए। सामान्य स्वास्थ्य संबंधी सलाह के लिए हमेशा अपने बच्चों के डॉक्टर की सलाह लेना ज़रूरी होता है।



